दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन बैठे रहे तसव्वुर-ए-जानाँ किये हुए दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुरसत के रात दिन जाड़ों की नर्म धूप और आँगन में लेट कर आँखों पे खींचकर तेरे आँचल के साए को औंधे पड़े रहे कभी करवट लिये हुए दिल ढूँढता है फिर वही फ़ुरसत के रातContinue reading “Those Days and Nights of Leisure”